Scout Guide Movement History and Rules (स्काउट गाइड आंदोलन इतिहास व नियम )
हिंदी में
स्काउट गाइड आन्दोलन
स्काउटिंग-
शब्द कोष में स्काउट शब्द का अर्थ मिलेगा 'गुप्तचर' । फौज में चुस्त और चालाक आदमी गुप्तचर या स्काउट का कार्य सदा से करते आये हैं । फौज में स्काउटों का कार्य खतरों का सामना करते हुये अपनी सूझ-बूझ और युक्ति से शत्रुओं का भेद लेकर अपने सेनापति को सूचित करना होता है ।
बीसवीं सदी के प्रारम्भ में स्काउट शब्द के अर्थ का विस्तार हो गया और शान्ति काल में भी समाज, देश और विश्व को ऊंचा उठाने के लिये बालकों और बालिकाओं को उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करते हुये उन्हें प्रशिक्षित किया जाने लगा ।
फौजी स्काउटिंग के तत्वों को नये साँचे में ढाल कर उसे बालोपयोगी और मनोवैज्ञानिक रूप दिया गया जिससे बालक और बालिकायें अपने जन्मजात गुणों और शक्तियों का विकास करते हुये संसार में भ्रातृत्व का प्रसार करते हुये सुयोग्य नागरिक बन सकें। आज इसी अर्थ में मुख्य रूप से स्काउट शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
बोअर युद्ध जिसमें स्काउटिंग का जन्म हुआ, लार्ड वेडेन पावेल ने यह अनुभव किया कि अंग्रेज शहरी जीवन बिताने के कारण डच संनिकों के मुकाबले में कमजोर सिद्ध हुये । अतः स्काउटिंग का प्रारम्भ करते समय लार्ड वेडेन पावेल ने प्राकृतिक बाहरी जीवन को अत्यधिक महत्व दिया।
प्रकृति के निकट रहकर, उसके सुन्दर और रमणीक दृश्य देखकर उसके रचयिता ईश्वर का साक्षात्कार होने का अवसर मिलता है और मनुष्य का जीवन ईश्वरमय होने लगता है ।
स्काउटिंग को स्वावलम्बन और प्रयत्न का आन्दोलन कहा जाता है। संसार में जितने भी महान व्यक्ति हुये हैं वह अपने अध्यवसाय और प्रयत्न से ही महान बने। दूसरों पर निर्भर रहने वाला व्यक्ति कभी भी महान नहीं बन सकता।
स्काउट को पथ प्रदर्शक अथवा Pioneer भी कहा जाता है जैसे रूस में। संसार के अधिकांश महान पुरुष नित्य डायरियां लिखते थे और अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करते थे। स्काउट भी इस ओर सजग रहता है। बोअर युद्ध के समय लार्ड बेडेन पावेल ने भी यह अनुभव किया कि अगर बालकों पर जिम्मेदारी डाली जावे, उन्हें आत्म निर्भर एवं तपस्वी बनाया जावे तो वे आहे समय में देश और जाति के सहायक सिद्ध हो सकते हैं । बोअर युद्ध के समय तमाम ऐसे कार्य जिन्हें अग्रेज सैनिक करते थे लड़कों को सौंपे गये जैसे चिट्ठियां पहुंचाना, प्राथमिक सहायता करना, शत्रुओं के भेद की बातें जानना आदि । इन्हीं बालकों के प्रयास से अंग्रेज बोबर युद्ध जीत गये और लार्ड वेडेन पावेल को बालकों की शक्ति पर विश्वास हो गया तथा उन्होंने स्काउट आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया।
एक दो व्यक्तियों के महान बनने से कोई देश महान नहीं हो जाता है। बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर देश के सभी व्यक्ति अच्छे और ऊंचे बनते हैं। तभी देश महान बनता है और ऊँचा उठता है ।
स्काउटिंग द्वारा बालक एवं बालिकाओं को शुभ संकल्प वाला बनाने का प्रयास किया जाता है। वे अपना दैनिक जीवन प्रार्थना से प्रारम्भ करते हैं और शरीर नित्य व्यायाम करके स्वस्थ्य रखते हैं ताकि वे समाज और देश की सेवा अच्छी प्रकार कर सकें। वे तरह-तरह के कला-कौशल और उपयोगी विद्यायें सीखते हैं ताकि वे उसके द्वारा समाज और देश की सेवा कर सकें और समय पड़ने पर इस हेतु अपने प्राणों की आहुति भी दे सकें उनमें घमण्ड नाम मात्र को भी नहीं होता । सायंकाल वे सोने से पूर्व मौर रहकर विचार करते हैं कि उनसे दिन में यदि कोई गलती हो गयी हो तो वे उसको सुधारें ।
लार्ड वेडेन पावेल के शब्दों में स्काउटिंग एक खेल है जिसको बड़े भाई छोटे भाइयों के साथ मिलकर खेलते हैं और खेल-खेल में उन्हें अच्छा नागरिक बना देते हैं ।
सन्तान को बिगड़ने से बचाना
आज अनेक व्यक्ति एवं बालक अपना बहुत सा समय यों ही नष्ट कर देते हैं, इस फालतू समय में बालक बहुधा कुटेवों में पड़ जाते हैं। स्काउटिंग के विषय में यह कहा जाता है कि स्काउटिंग फालतू समय का सदुपयोग है। यदि इस समय बालकों को स्काउटिंग की शिक्षा दी जावे तो वे उपयोगी बातें सीख कर स्वावलम्बी और अच्छे नागरिक बन सकते हैं । एक सप्ताह में १६८ घण्टे होते हैं, जिसमें स्कूल के अध्ययन में ३० घण्टे, सोने में ५६ घण्टे और स्नान खानपान आदि में २१ घण्टे निकाल दें तो भी ६१ घण्टे बाकी बचते हैं अर्थात प्रतिदिन औसत 2 घण्टे का पड़ता है। यह उस अवस्था में जब छुट्टी एक दिन ही सप्ताह में गिनी जावे । जब छुट्टियां अधिक हों तो इस फालतू समय में से थोड़ा सा समय भी स्काउटिंग की शिक्षा के लिये ले लिया जावे तो बालकों का निश्चित ही विकास हो सकता है । अतः यह धारणा कि स्काउटिंग में समय बर्बाद होता है सर्वथा निराधार है बल्कि स्काउटिंग द्वारा फालतू समय का सदुपयोग करके उन्हें बिगड़ने से बचाया जा सकता है और उन्हें अच्छा नागरिक बनाया जा सकता है । स्काउटिंग के द्वारा बालकों में ऐसे सद्गुणों और प्रवृत्तियों का विकास किया जाता है जिससे वे जिस क्षेत्र में जायें वहां चमकें और अग्रणी बनें । अतः आज सन्तान को योग्य, सुशिक्षित व उपयोगी नागरिक बनाना हो तो माता-पिता को अपनी सन्तान को स्काउट अथवा गाइड बनने का अवसर देना चाहिये । स्काउटिंग में प्रवेश होने के कुछ दिन बाद ही बिगड़ी सन्तान में भी निरन्तर सुधार होने लगता है। अतः स्काउटिंग चरित्र हीनता का निश्चित इलाज भी है।
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शिक्षा प्रणाली की कमियां
स्काउटिंग को वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों का पूरक जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत सी कमियां हैं और इसमें आमूल चूल परिवर्तन की बात देश के स्वतन्त्र होने से पूर्व से कही जा रही है। आज भी हमारे नेता गण वर्तमान शिक्षा प्रणाली के ढांचे में नई शिक्षा नीति लागू करना चाहते हैं। इस प्रकार के प्रयास पहले भी किये गये पर परिवर्तन केवल कागजों में होकर ही रह गया।
स्काउटिंग शिक्षा प्रणाली की कमियों को पूरा करने का दावा करता है । आइये पहले हम शिक्षा प्रणाली की कमियों की समीक्षा कर लें।
1- बालकों को समूह में या कक्षा में शिक्षा दी जाती है। किसी किसी कक्षा में तो 60 या 100 बालक पढ़ाये जाते हैं। कुछ महीनों के भीतर सारी पढ़ाई विद्यार्थी के दिमाग में ठूस देने का प्रयास होता है और शिक्षा का उद्देश्य ज्ञानोपार्जन न होकर परीक्षा उत्तीर्ण करना मात्र रहता है । जिस स्कूल में देखिये आपको ऐसे बहुत छात्र मिलेंगे जो परीक्षा का नाम सुनते ही कांपते होंगे। कोई गणित के लिये रोता होगा और कोई इतिहास के लिये सिर पटकता होगा, कोई मनाता होगा कि भूगोल से पीछा छूटे, किसी के लिये विज्ञान जान का बबाल होगा। यह सब किस लिये ? इसलिये कि उन्हें व्यक्तिगत शिक्षा नहीं दी जाती और इस अफरा तफरी में न तो कुछ सीख पाते हैं और न उनकी शक्तियों का विकास होता है।
2- जिस गुण या व्यवसाय को सीखने के लिये बालक में स्वाभाविक रुचि होती है वह उसे सीखने के लिये नहीं मिलती। जो बालक अच्छा डाक्टर होना चाहता है या हो सकता है उसे आप वकील बनायें तो डाक्टर तो नहीं बनेगा ही, अच्छा वकील भी नहीं बन पायेगा । इससे उसकी, उसके कुटुम्ब की और देश की कितनी हानि होती है यह स्पष्ट है ।
3- तीसरी कमी स्वास्थ्य और चरित्र की शिक्षा का पूर्णतया अभाव ।
4- गुरु और शिष्य का सम्बन्ध पिता और पुत्र का था। वह अब स्वामी और सेवक का सा हो गया है इससे श्रद्धा और प्यार के स्थान पर भय और भीरूता उत्पन्न होती है। यही कारण है कि हमारे बालक कायर निरुत्साहित और धैर्यहीन होते जाते हैं। शुरू से ही उनके उत्साह बोर जन्मजात वीरता का दमन हो जाता है। आत्म-सम्मान उनमें नाम मात्र भी नहीं रह जाता है । खुशामद और चापलूसी के वे आदी हो जाते हैं। बालकों को डरा धमका कर और धमकी देकर सुधारने की कोशिश की जाती है। जुर्माना, निष्कासन या धमकी से उन्हें संयमी और आज्ञाकारी बनाने का प्रयास किया जाता है।
स्काउटिंग इन कमियों की पूर्ति कैसे कर सकती है।
(1) स्काउट मास्टर हर बालक की रुचि, योग्यता और शक्तियों को विविध उपायों से जैसे कैम्पिंग, हाइकिंग, कैम्पफायर आदि से जानने की कोशिश करता है और जानकर उनके विकास करने के साधन जुटाने का प्रयास करता है | बालक का उसी विषय में प्रवीणता लाने का विचार बनता है जिसके लिये उसकी रुचि बनी है।
(2) स्काउट मास्टर बालक के स्वास्थ्य और चरित्र पर भी ध्यान देता है।
(३) स्काउट मास्टर अपने बालकों के साथ अपने छोटे भाइयों का सा व्यवहार करता है। प्रेम और श्रद्धा से उनके सुधार में लीन रहता है। वह उनके हृदय में दायित्व के भाव पैदा करता है। बालक बड़ी श्रद्धा से उसका साथ देते है।
बालकों को सत्यवादी, प्रतिज्ञा पालक, विश्वसनीय ईश्वर भक्त, स्वतन्त्रता प्रिय, वीर, निर्भीक बनाने की चेष्टा की जाती है ।
(4) कला या हुनर - किसी कला की ओर उनकी रुचि बढ़ाई जाती है। उसकी उन्हें शिक्षा दी जाती है जिससे जीवन निर्वाह के लिये उन्हें एक स्वतन्त्र साधन प्राप्त हो जाता है।
(5) उन्हें मन्त्र पढ़ाया जाता है कि उनका जीवन दूसरों के लिये है। दूसरों को सुखी बनाकर स्वयं सुख प्राप्त करने का अभ्यासी बनाया जाता है। नियमानुसार उन्हें प्रतिदिन कोई छोटा बड़ा सेवा कार्य करना होता है। देश- म, परोपकार, निःस्वार्थता उनके जीवन के मुख्य अंग बन जाते
है।
(6) कैम्प जीवन कैम्प में रहकर बालक शूरवीर, उदार, विचार- शील, मितव्यमी विनम्र और स्वस्थ बनते हैं।
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दुनिया में स्काउटिंग और गाइडिंग की उत्पत्ति : - बॉय स्काउट मूवमेंट की शुरुआत वर्ष 1907 में हुई जब सेना के 50 वर्षीय मेजर जनरल लॉर्ड बाडेन पॉवेल ने 21 लड़कों के साथ दक्षिणी इंग्लैंड के पूल हार्बर में ब्राउनसी द्वीप पर एक प्रयोगात्मक शिविर आयोजित किया। सभी लड़के अलग-अलग सोशल बैकग्राउंड से थे। लड़के शिविर के लिए 25.7.1907 को पहुंचे, जिसका उद्घाटन 29 अगस्त 1907 को किया गया था और 9 अगस्त 1907 को बंद हो गया था। शिविर के सफल संचालन और 1908 में "स्काउटिंग फॉर बॉयज़" पुस्तक के प्रकाशन ने बॉय स्काउट आंदोलन की शुरुआत को चिह्नित किया।
वर्ष 1909 में 4 सितंबर को क्रिस्टल पैलेस रैली आयोजित की गई थी। यह लगभग 11,000 स्काउट्स की एक अनूठी सभा थी। रैली स्काउटिंग फॉर बॉयज के प्रकाशन के डेढ़ साल बाद और ब्राउनसी द्वीप स्काउट कैंप पर रॉबर्ट बैडेन-पॉवेल के प्रदर्शन के दो साल बाद आयोजित की गई थी। बॉय स्काउट वर्दी पहने हुए गर्ल स्काउट्स के एक गश्ती दल सहित कई सौ लड़कियां दिखाई दीं और स्काउट आंदोलन में शामिल होना चाहती थीं। लॉर्ड बैडेन पॉवेल ने अपनी बहन एग्नेस बैडेन पॉवेल की मदद से लड़कियों के लिए एक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। 1910 में, गर्ल स्काउट्स के लिए एक आंदोलन औपचारिक रूप से स्थापित किया गया था।
भारत में स्काउटिंग : - भारत में स्काउटिंग की शुरुआत वर्ष 1909 में हुई, जब कैप्टन टी.एच.बेकर ने बैंगलोर में पहली स्काउट ट्रूप की स्थापना की और इसे शाही मुख्यालय, लंदन के साथ पंजीकृत कराया। इसके बाद, स्काउट ट्रूप्स का गठन बैंगलोर, कलकत्ता, किरकी (पुणे), शिमला, मद्रास, जबलपुर, लोनावला (मुंबई) में किया गया और 1910 और 1911 के दौरान इंपीरियल मुख्यालय के साथ पंजीकृत किया गया। ये इकाइयां केवल यूरोपीय और एंग्लो इंडियन बच्चों के लिए खुली थीं।
भारत में पहली गाइड कंपनी 1911 में जबलपुर, मध्य भारत में शुरू की गई थी। 2 साल की छोटी अवधि के भीतर, हावड़ा, कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास और अन्य शहरों में कई और गाइड कंपनियों का गठन किया गया था, लेकिन सीधे इंपीरियल मुख्यालय, लंदन के नियंत्रण में थे। इंडियन गर्ल गाइड्स की पहली कंपनी 1916 में पुणे में बनाई गई थी। बाद में, विभिन्न शहरों में कई गाइड कंपनियों का गठन किया गया। 1917 में, प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस की पत्नी लेडी अबला बोस को भारतीय गाइडों के लिए पहले भारतीय गाइड आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था।
चूंकि स्काउट आंदोलन शुरू में भारतीय लड़कों के लिए खुला नहीं था, इसलिए भारत के राष्ट्रवादी नेताओं ने भारतीय लड़कों को स्काउटिंग गतिविधियों की पेशकश करने का फैसला किया और सेवा समिति स्काउट एसोसिएशन का गठन इलाहाबाद में मुख्यालय के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित हृदय नाथ कुंजरू और पंडित श्रीराम वाजपेयी द्वारा किया गया था। डॉ एनी बेसेंट ने श्री जी एस अरुंडेल की मदद से मद्रास में भारतीय लड़कों के लिए एक अलग स्काउट एसोसिएशन शुरू किया। पहला वुड बैज कोर्स 1922 में कलकत्ता में आयोजित किया गया था। मई 1923 में पचमढ़ी में एक स्काउट मास्टर प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया था। श्री विवियन बोस ने पचमढ़ी में आयोजित पहले वुड बैज शिविर में भाग लिया था। 1921 और 1937 में लॉर्ड बाडेन पॉवेल की भारत यात्रा के दौरान भारत में मौजूद विभिन्न स्काउट समूहों के एकीकरण के लिए प्रयास किए गए थे, लेकिन असफल रहे। एकीकरण में विफलता का प्रमुख कारण वादा खंड था जिसमें "राजा के लिए कर्तव्य" शब्द शामिल था। हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की हमारी देशभक्ति की भावनाओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठा को मंजूरी नहीं दी और इसके बजाय यह जोर दिया गया कि देश के प्रति निष्ठा वफादारी स्काउट प्रॉमिस का हिस्सा होनी चाहिए।
स्वतंत्र भारत में स्काउटिंग गाइडिंग :- हमारे देश की स्वतंत्रता के बाद, भारत में कार्यरत स्काउट और गाइड संघों के एकीकरण के लिए प्रयास किए गए। हमारे राष्ट्रीय नेताओं जैसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद, मध्य प्रांत के गवर्नर श्री मंगल दास पाकवासा और स्काउट नेताओं पंडित हृदय नाथ कुंजरू, पंडित श्री राम बाजपेयी, न्यायमूर्ति विवियन बोस और अन्य लोगों द्वारा स्काउट/गाइड एसोसिएशनों के विलय के लिए गंभीर प्रयास किए गए थे।
डॉ. तारा चंद, शिक्षा सचिव, भारत सरकार ने विलय विलेख को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अंतिम विलय 7 नवंबर 1950 को हुआ और एकीकृत संगठन "भारत स्काउट्स एंड गाइड्स" नाम से अस्तित्व में आया। गर्ल गाइड्स एसोसिएशन औपचारिक रूप से 15 अगस्त 1951 को भारत स्काउट्स एंड गाइड्स में शामिल हो गया।
संविधान और मुख्यालय :- भारत स्काउट्स एंड गाइड्स सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है। यह पूर्णत स्वैच्छिक, गैर-राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष संगठन है। भारत स्काउट्स और गाइड्स का राष्ट्रीय मुख्यालय 1963 तक रीगल बिल्डिंग, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली से कार्य करता था। इसके बाद, यह अपने स्वयं के भवन में स्थानांतरित हो गया और लक्ष्मी मजूमदार भवन, 16, महात्मा गांधी मार्ग, इंद्र प्रस्थ एस्टेट, नई दिल्ली -110002 से कार्य कर रहा है। राष्ट्रीय मुख्यालय भवन का उद्घाटन वर्ष 1963 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन द्वारा किया गया था।
स्काउटिंग और गाइडिंग गतिविधियों की वृद्धि : - पहली राष्ट्रीय परिषद की बैठक 31.10.1953 को एपीआरओ में निर्धारित आरएचई नियमों के अनुसार राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ आयोजित की गई थी। श्री मंगलदास पाकवासा को प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। चार को उपाध्यक्ष (Vice-Presidents) के रूप में चुना गया। डॉ. एच. एन. कुंजरू को राष्ट्रीय आयुक्त (National Commissioner) के रूप में चुना गया।
श्री विवियन बोस और श्रीमती क्वीनी (Queenie) को क्रमशः स्काउट्स और गाइड्स का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया था। पंडित श्री राम बाजपेयी को राष्ट्रीय आयोजन आयुक्त नियुक्त किया गया। कार्यकारी समिति की पहली बैठक 22 नवंबर 1953 को हुई थी।
स्काउट्स और गाइड्स का पहला राष्ट्रीय जंबूरी 29 दिसंबर, 1953 से 2 जनवरी, 1954 तक सिकंदराबाद (हैदराबाद) में आयोजित किया गया था। 7340 स्काउट्स और गाइड्स ने अपने स्काउट-गाइड कौशल का प्रदर्शन किया। पंडित श्री राम बाजपेयी, राष्ट्रीय आयोजन आयुक्त इसके निदेशक थे। अंतिम दिन, भारत के प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने जंबूरी का दौरा किया और विभिन्न गतिविधियों को देखने के लिए 40 मिनट बिताए। अपने संबोधन में उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि देश के हर लड़के और लड़की को स्काउटिंग/गाइडिंग में शामिल होना चाहिए।
डॉ कुंजरू और श्री विवियन बोस ने पचमढ़ी में राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र के लिए एक उपयुक्त भूखंड प्राप्त करने के लिए लगातार काम किया। डॉ. मंगलदास पकवासा ने इस कदम को अपना समर्थन दिया और मध्य भारत (अब मध्य प्रदेश) की राज्य सरकार ने इस उद्देश्य के लिए 45.6 एकड़ का एक भूखंड उपहार में दिया और बाद में सरकार द्वारा और अधिक भूमि जोड़ी गई। वर्तमान में एनटीसी 56 एकड़ में स्थित है। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 10 सितंबर 1956 को बीपी स्मारक भवन और सहायक संरचना की आधारशिला रखी। सेठ किरोड़ीमल ट्रस्ट ने प्रशासनिक ब्लॉक की स्थापना के लिए 45000 रुपये का दान दिया। बालिका गाइड एसोसिएशन ने बीपी मेमोरियल भवन बनाने के लिए 68000 रुपये दिए।
पहली राष्ट्रपति स्काउट्स और राष्ट्रपति गाइड रैली 28 नवंबर 1961 को अशोका हॉल में राष्ट्रपति भवन में आयोजित की गई थी। भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने प्रमाण पत्र प्रदान किए।
17 वें विश्व स्काउट सम्मेलन की मेजबानी 1959 में नई दिल्ली में भारत स्काउट्स एंड गाइड्स द्वारा की गई थी।
20वां एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय (APR) स्काउट सम्मेलन 7 से 11 अक्तूबर, 2001 तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया था, जब श्री जी रंगा राव भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के निदेशक थे।
डब्ल्यूएजीजीजीएस (WAGGGS) द्वारा 36 वां विश्व गाइड सम्मेलन सितंबर 2018 के दौरान नई दिल्ली में भारत स्काउट्स एंड गाइड्स द्वारा आयोजित किया गया था।
पचमढ़ी में राष्ट्रीय साहसिक संस्थान का उद्घाटन 9 मई 1993 को राष्ट्रीय आयुक्त श्री वी. पी. दीनदयाल नायडू ने किया था। युवाओं की साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा के पलवल के गदपुरी में भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के राष्ट्रीय युवा परिसर में 22 फरवरी, 2018 को राष्ट्रीय युवा साहसिक संस्थान शुरू किया गया था। एक अन्य राष्ट्रीय साहसिक संस्थान स्नो व्यू कैंपसाइट, कर्सियांग, दार्जिलिंग में शुरू किया गया था, जिसके लिए 6 अप्रैल, 2021 को मुख्य राष्ट्रीय आयुक्त डॉ. केके खंडेलवाल, आईएएस (सेवानिवृत्त) द्वारा आधारशिला रखी गई थी। यह भारत स्काउट्स एंड गाइड्स, राष्ट्रीय मुख्यालय और पश्चिम बंगाल राज्य के भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के बीच एक संयुक्त उद्यम है।
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